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Channel: अनुशील
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यात्रा एवं यात्रा के प्रतिमान

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मौन हो
मौन में प्रार्थना हो

बुलबुलों-सा जीवन है
बुलबुलों-सी ही
मिट जाने की चाहना हो

फिर कहीं जाकर
मोक्ष का संस्कार खिलेगा
उस परमधाम का द्वार मिलेगा

वो दूर वहां कहीं
क्षितिज पर है

और क्षितिज भी तो
मात्र भ्रम ही है

जहाँ धरा-गगन के मिलन का भ्रम जीता है

हम सबके पास
हमारी अपनी-अपनी
जीवन-गीता है

इसे पढने की
पढ़े हुए को जीने की
मति जुटानी है

इतनी अहमियत मत दो खुद को
निर्बाध बहते जाओ
कि
तुम्हारी आत्मा वस्तुतः
कल-कल बहता वारि है !!

***

हम सबकी
अपनी-अपनी यात्रा है

हम सबके
अपने-अपने सत्य हैं

सत्य के प्रतिमान भिन्न हैं
पर है सब सत्य ही

कि
हमारी यात्रा
एक छोटे सत्य से
एक बड़े सत्य तक की यात्रा है

और इस तरह
बढ़ते-बढ़ते हम एक दिन
परमसत्य को पा लेंगे

पाना ही है 


कि
ये यात्रा वहां तक की ही है
न ज़रा कम न तनिक ज्यादा

अब चाहे
जब पूरी हो
एक जन्म में या कि कई जन्म लग जाएँ

धैर्य धरे बस चलते जाना है
कि सभी यात्री हैं
पड़ाव कई हैं
और यात्रा लम्बी है !!


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