$ 0 0 पेड़परमार्थ के लिएअपना सब कुछ लुटा देते हैंउनकी छाँव में हमकुछ-कुछ उन जैसे हीऔरों के ज़ख्मों की दवा होते हैंपेड़ होनाएक जीवन दर्शन है उनका सान्निध्य जीवन को अर्थ नये देता हैउसकी शीतलता के करीब हो हम उस जैसे हो पाते हैं सत्संगति कालाभ फलित होता है दुःख के कांटे पाँव में चुभे होंतब भीमुख मलिन नहीं होता है पेड़ की तरहमुस्कुराते हुएहम फिर पतझड़ को भीअपना सगा कहते हैं केवल बासंती उपमाओं से ही नहींहर कंटीले सच से भी फिरजीवन कोसींचते हैं हर विसंगति को फिरबिना किसी विचलन केउसकी तरह सहज स्वीकारते हैंक्षय को देखआँखें फिर नहीं मींचते है ज़िन्दगी चलती रहती हैबिना अपनी मौलिकता त्यागे मौसमों के अनुरूप ढलती रहती है !