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Channel: अनुशील
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सत्संगति विसंगति

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पेड़
परमार्थ के लिए
अपना सब कुछ लुटा देते हैं


उनकी छाँव में हम
कुछ-कुछ उन जैसे ही
औरों के ज़ख्मों की दवा होते हैं


पेड़ होना
एक जीवन दर्शन है 


उनका सान्निध्य जीवन को अर्थ नये देता है
उसकी शीतलता के करीब हो हम उस जैसे हो पाते हैं 


सत्संगति का
लाभ फलित होता है 


दुःख के कांटे पाँव में चुभे हों
तब भी
मुख मलिन नहीं होता है 


पेड़ की तरह
मुस्कुराते हुए
हम फिर पतझड़ को भी
अपना सगा कहते हैं 


केवल बासंती उपमाओं से ही नहीं
हर कंटीले सच से भी फिर
जीवन को
सींचते हैं 


हर विसंगति को फिर
बिना किसी विचलन के
उसकी तरह सहज स्वीकारते हैं
क्षय को देख
आँखें  फिर नहीं मींचते है 


ज़िन्दगी
चलती रहती है
बिना अपनी मौलिकता त्यागे
मौसमों के अनुरूप
ढलती रहती है !


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