पापा से बातचीत :: एक अंश---------------------------------
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Dr. S.N.Pandey |
सुप्रभातः सर्वेषां !!
कस्याऽपिलघुवृहद्वाकार्यस्य कारकाः शीमद्भाग्वद्गीतानुसारमेवंविधम्:-
अधिष्ठानं तथा कर्ता करणञ्चपृथग्विधम्।
नानाविधं पृथक् चेष्टा दैवं चात्र पञ्चमम्।।
अर्थात! किसी भी कार्य के सम्पादनार्थ पांच सहयोगी कारकों का होना आवश्यक है,
पहला:: अधिष्ठान्=कार्यस्थल का चयन, अर्थात आधार का चयन।
दूसरा:: कर्ता (सम्पादकः) करने वाला।
तीसरा:: करणं च पृथक् विधम्=कार्य साधन मे सहयोगी उपकरण।
चौथा:: इन तीनों के प्राप्त होने पर यदि सकारात्मक सोच के साथ कर्ता कार्यसिद्धि के लिए विविध चेष्टाओं के प्रति सजग नही है, तो भी सब व्यर्थ।
दैवं चात्रपंचमम्=दैवं=भाग्यं, भाग्य को पांचवें कारक में भगवान् ने परिगणित किया है, कार्यसिद्धि के चार कारकों के प्रति जो ईमानदारी से लगे होते हैं, दैव=भाग्य भी उन्ही का सहायक होता है।
यह भगवद्वाणी है, सफल कर्ता के लिए अक्षरशः अनुकरणीय!
बाकी तो जो हम हैं, वह हैं ही।
सधन्यवाद प्रेषित्।
जयतु भास्करः!
--सत्यनारायण पांडेय