$ 0 0 हम रूंधे हुए गले सेकह रहे होंऔर तुम्हारी आँखों सेअविरल आंसू बह रहे हों इससे आदर्शकोई स्थिति हो तो बताओस्मृति कुंजों सेऐसी भावदशा ढूंढ लाओ. धारा के समानबह रहे होंशब्द तरंगों कोतह रहे हों इस तरहपर्वत के चरणों पर लहराओसतह को छोड़जरा गहराई में समाओ. हृदय मेंसप्रेम साकार रह रहे होंमन वीणा सेनाम तुम्हारा कह रहे हों इस तरह कीभंगिमाएं सजाओक्षितिज की सुषमाकभी यूँ भी आँगन में बुलाओ.रचनाशीलता का प्रभाव कब ऐसा सबल होगाकि सुनने वालासजल होगा कुछ ऐसे हीबेतुके भाव लिए लिखते हैंजो हैंहम वैसे ही दीखते हैं !!