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Channel: अनुशील
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यूँ ही... यूँ हो...

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हम रूंधे हुए गले से
कह रहे हों
और तुम्हारी आँखों से
अविरल आंसू बह रहे  हों
 

इससे आदर्श
कोई स्थिति हो तो बताओ
स्मृति कुंजों से
ऐसी भावदशा ढूंढ लाओ. 


धारा के समान
बह रहे हों
शब्द तरंगों को
तह रहे हों


इस तरह
पर्वत के चरणों पर लहराओ
सतह को छोड़
जरा गहराई में समाओ. 


हृदय में
सप्रेम साकार रह रहे हों
मन वीणा से
नाम तुम्हारा कह रहे हों 


इस तरह की
भंगिमाएं सजाओ
क्षितिज की सुषमा
कभी यूँ भी आँगन में बुलाओ.



रचनाशीलता का प्रभाव
कब ऐसा सबल होगा
कि सुनने वाला
सजल होगा 



कुछ ऐसे ही
बेतुके भाव लिए लिखते हैं
जो हैं
हम वैसे ही दीखते हैं !!


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