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Channel: अनुशील
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जीवन मृत्यु के द्वन्द के बीच प्रार्थनारत चेतना

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एक रोज़
जीवन खुद
स्वयं से हारा था


उसने
अपनी सारी जिजीविषा को
मृत्यु पर वारा था. 


मृत्यु
दिखती हो क्रूर
पर होती है ममतामयी ही 



तभी तो
हारे हुए जीवन को
अंक से लगाया

प्यार से
सर पर हाथ फेर
समझाया--


ये मुझसे मिलने की उत्कंठा
क्षण भर की बात है
हे जीवन!
जिजीविषा तुम्हारी संगिनी है
वही तुम्हारा प्रात है 


इनकार नहीं
मैं हूँ तुम्हारी अंतिम परिणति 


परमलक्ष्य सी दूर खड़ी
एक दिन तुझे मैं स्वयं अंक में ले लूंगी


पर अभी तुम्हारे
खेलने खाने के दिन हैं


जिजीविषा का दामन थामे
तुम्हें कितनी ही राहों को
रौंदना है अभी 


तुम्हें जीना है 


अभी मीलों चलना है 


मुझ तक आने की राह
अभी लम्बी है
हे जीवन! अभी तुम्हें
जीवन जय करना है !


कितनों की राहों के
कांटे चुनने हैं 


जीवन!
तुम्हें अपने नाम की सार्थकता के
अभी पैमाने बुनने हैं !!




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