पर्वतों की
उस ऊंचाई तक
संदेशे
जाने कैसे पहुँचते होंगे...
उन वीरानों में
कैसे वो
सपनों सा रचते बसते होंगे...
कैसा उनका तेज़ प्रखर
कि वो जीवन जय करते हैं...
अपनों से दूर
निराली अपनी दुनिया में रहते हैं...
मिटटी में रमा हुआ
जो मन है
आंसू भी नत-विनत हँसते होंगे...
उन वीरानों में
कैसे वो
सपनों सा रचते बसते होंगे... !!