लेखनी!
तूं क्यों हुई मौन?
अब भोले जनमानस को--
जगाए कौन?
नेता बने पहनकर खादी-
पर आज़ादी की गरिमा भुला दी
बहा बहा घड़ियाली आंसू-
धन-दौलत ही केवल बटोर रहे -
काट रहे चकमक चांदी।
मंत्रीपद पाने से पहले सूखे होते-
इनके कपोल,
फिर मंत्री बनते ही-
दीखने लगते गोल मटोल।
अमर शहीदों के बल आयी--
आजादी की गंगा।
फिर भी देश क्यों है?
भूखा-नंगा।
तिकड़म भिड़ा,
जनता की सम्पत्ति से बढ़ा रहे
अपना बैंक बैलेंस !
त्याग तपस्या हुई बेकार
ये उड़ाया करते उसका मखौल
चढा देश का भाग्य,
दाव पर
भूला दिए--
शहीद भगत को-
चन्द्रशेखर आजाद, गांधी, पटेल को
नेहरू, सुभाष को।
दिखा प्रगति का झूठा सपना
तिजोरी भर रहे वे केवल अपना
झूठी होती घोषणा,
केवल--
सब्जबाग।
दिलायी जिसने आजादी
आजादी के लिए स्वप्राण की--
हंसते हंसते बलि चढ़ा दी
उनकी भी मर्यादा भूल--
नेता बनते जा रहे
जनता के लिए शूल।
अब कौन सिखाये
इन्हे वह उसूल --
आजादी की लड़ी थी जंग जिसने
प्राणों का मोह ही नही सबकुछ--
थे त्याग दिये,
वे थे भारत मां के सच्चे सपूत,
छात्रशक्ति, तपःपूत।
"वन्दे मातरम्"गाते ही---
धड़का देते थे दुश्मन की छाती
आज के छात्र क्यों हैं?
मौन... ?!!
क्यूँ माने बैठे हैं हम
अपनी शक्तियों को गौण... ?!!
है व्यवस्था ही जैसे चरमरायी हुई
अवरुद्ध कंठ आवाज़ है भर्रायी हुई
शिक्षक
शिक्षण से दूर रहने को मजबूर।
हों मंत्री,
संस्थापक या व्यवस्थापक
हैं रहते योजना-
उद्देश्य से दूर!
केवल विज्ञापन,
दिखावा, प्रचार-
भरते जाते तिजोरी अपनी-अपनी
ऐसे में कैसे हो उद्धार... ?!!
जागें अब भी नौनिहाल!
कब तक झेलेंगे दुखद हाल।
जिस दिन सेवक और मालिक का भेद
सामान्य जनमानस समझ जाएगा,
मिट जाएगी यह विडम्बना
मिट जाएगा सकल दुःख-दैन्य
स्वतंत्रता सुतंत्रता ले आएगी--
भारतमाता फिर फूली नहीं समायेगी !!
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डॉ सत्यनारायण पाण्डेय |