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"हीरा जन्म अमोल था... " :: सत्यनारायण पाण्डेय

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Dr. S.N. Pandey


यहीं से भूल आरम्भ हुई है


राम कृष्ण को
क़िताब की वस्तु समझ
हमने अलमारियों में सजा दिया है...



पूजा घरों में बिठा दिया है...


उन मूल्यों की 

हम आरती गाते हैं
पर अफ़सोस ! 

आचरण में 

कहाँ वो जीवन शैली उतार  पाते  हैं... !



रामायण हो
या कि
महाभारत, पुराणादि 


सब
उन्ही चरित्रों के संग्रह हैं,
जो उसी रूप में
जीये गये हैं...


आज भी
सदचरित्
आचरण की वस्तु है,
न कि
पुस्तक का विषय बता
पल्ला झाड़ लेने की  


ऐसे तो फिर कभी
सुधार की सम्भावना नहीं।


"आचरणात् आचार्यः"
शब्द और अर्थ
अलग अलग नहीं,


पर हम
जागने को तैयार ही नहीं


बैंकर्स चेक के 

बाऊंस होने की अवधि 

तो सबको याद रहती है,
चाहे छोटी राशि ही क्यों न हो 


पर
"हीरा जन्म अमोल था
कौड़ी बदले जाय"--
कबीर की यह वाणी
मात्र किताब की ही वस्तु बनी रहे,
इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता...


सोचें!
भुगत कौन रहा है ?!!


सब सम्भव है...
दृढता चाहिए,
सुशासन चाहिए,
कर्तव्यनिष्ठता चाहिए !!


यों
युग धर्म भी
प्रभावी होता है,
अच्छे उदाहरण अतीत् के हैं तो !! 


मगर वर्तमान तो
भविष्य के लिए बुरे उदाहरण ही गढने मे लगा है 


क्या इसे
युगधर्म मान
संतोष कर लेंगे हम ?


या दुन्दुभी नाद से जागेंगे
कुछ ठोस करेंगे
इस युग का वर्तमान बदलेंगे
इस युग का वर्तमान बदलेंगे... ??!!





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