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Channel: अनुशील
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त्रासद समय

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रिश्ते आज
खूंटियों पर टंगी
तस्वीर हो गए हैं...


दीवारों में
दरारें उग आई हैं...


जीवन
मौत के कगार पर खड़ा
क्रंदन कर रहा है...


और मौत क्या करे
वह हँस कर
अपनी गोद में पनाह दे रही है
तड़पती आत्माओं को...


ऐसा लगता है
ज़िन्दगी ने अपनी सारी रीत
सिरे से भुला दी हो जैसे... 


जीने वालों ने
जीवन को
कैसा निरीह बना दिया है...


कभी भी पूर्णविराम लग जाता  है... 


हादसा
वीभत्स चेहरे इख्तियार कर
ज़िन्दगानियाँ निगल जाता है !


मृत तो मृत
हताश उदास ज़िन्दा आँखों में भी
फिर
कुछ नहीं बचता...


आस्था विश्वास की जडें हिल जाती हैं
सुबहें...
सूरज और
किरणों से
विरक्ति सी हो जाती है...


---


फिर
नियति इतनी भी क्रूर नहीं 


कुछ विम्ब उज्जवल से
प्रतिस्थापित करती है
हमारी चेतना के धरातल पर 


और
हम उन निराश क्षणों में
एक नन्हे से श्वेत पुष्प में
आशा की किरण देख लेते हैं 


इस त्रासद समय में
हम
यूँ अपने सांस लेते रहने की
गुंजाईश
बचा लेते हैं... !!


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