$ 0 0 रिश्ते आज खूंटियों पर टंगी तस्वीर हो गए हैं...दीवारों में दरारें उग आई हैं...जीवनमौत के कगार पर खड़ाक्रंदन कर रहा है...और मौत क्या करेवह हँस करअपनी गोद में पनाह दे रही हैतड़पती आत्माओं को...ऐसा लगता हैज़िन्दगी ने अपनी सारी रीतसिरे से भुला दी हो जैसे... जीने वालों नेजीवन कोकैसा निरीह बना दिया है...कभी भी पूर्णविराम लग जाता है... हादसावीभत्स चेहरे इख्तियार करज़िन्दगानियाँ निगल जाता है !मृत तो मृतहताश उदास ज़िन्दा आँखों में भीफिरकुछ नहीं बचता...आस्था विश्वास की जडें हिल जाती हैंसुबहें...सूरज औरकिरणों सेविरक्ति सी हो जाती है...---फिरनियति इतनी भी क्रूर नहीं कुछ विम्ब उज्जवल सेप्रतिस्थापित करती हैहमारी चेतना के धरातल पर औरहम उन निराश क्षणों में एक नन्हे से श्वेत पुष्प मेंआशा की किरण देख लेते हैं इस त्रासद समय मेंहमयूँ अपने सांस लेते रहने कीगुंजाईशबचा लेते हैं... !!