मैंने
बहुत सारी उदासियाँ जी हैं...
उन बहुत सारी उदासियों में से
कुछ तो मुझे
हज़ार खिलखिलाहटों से अधिक प्रिय हैं...
कि
वे उदासियां
मुझे मेरे इतने करीब ले गयीं
कि मैंने
उस निकटता के प्रकाश में
अपनी तमाम खामियों को
स्पष्ट पहचाना...
अपनी लघुता महसूस की
अपने होने की निरर्थकता को पहचाना
अपनी कविताओं में दर्ज़
आस विश्वास की
कितनी ही बातों को मैंने तत्क्षण खारिज़ किया
सृजन के कुछ दिव्य पल जिए
आंसुओं से अपनी आत्मा के दाग धोये
क्रोध से उपजे वैमनस्य को
कतरा कतरा आंसुओं से शांत किया
जीवन को पुनः विश्रांत किया
कि
इतने में
धूप खिल आई...
सूखा ले गयी
सारी नमी
थम गयी रुलाई...
मुस्कान वहीँ खिली बैठी थी
मेरे दामन से लिपट गयी
ज़िन्दगी ने मुझे आवाज़ दिया
उदासियाँ अचानक सिमट गयीं
मैंने
मुस्कान को
गले लगाते हुए,
उदासी को
भरे मन से विदा किया !
कहीं आँखों की कोर से
छलकता कोई भाव चुपके से इशारों में कह गया--
उदासी, फिर आना
कि मुझे फिर अपने करीब होना है
मुझे अपने बहाने कोटि कोटि आत्माओं के दुःख से रोना है... !!