चुन लेते
कुछ ख़्वाब कहीं से
हम भी ख़्वाब बो लेते...
गीत छंद की दुनिया में
हम भी किसी कविता की
भूली बिसरी कोई पंक्ति हो लेते...
पर हमें तो
ठोकरों को जीने वाले पाँव
होना था...
कहीं दूर समंदर किनारे बसा
विस्मृत कोई गाँव
होना था...
सो हम वही हुए...
जो थे वही रहे... !!