दूध और दही की नदियाँ,
बहाने का नारा ----
बाद में देना!
कम से कम प्यासों को,
शुद्ध पानी तो पिलाओ!
सर्वं कर्तुं समर्थः -
सर्वकारः (सरकार) पद से
बना है।
फिर
सरकार (सर्वकारः) के होने पर भी -----
गरीब मजदूर,
बेहाल किसान क्यों ???
कर रहे आत्म-हनन।
क्या बहु बेटियां,
यूं ही सतायी जायेंगी?
कभी अफसरशाही,
कभी जनप्रतिनिधि की
तानाशाही --
चलती ही रहेगी?
आखिर अब हम कब बदलेंगे?
भ्रष्टाचार का बढ़ना,
दयालुता का-
इस तरह मरना --
ओह!
होता मन मे प्रश्न -
क्या अब भी नहीं होगा --
इन कुप्रवृत्तियों का अन्त ।
स्वार्थपरता का,
जन जन मे बढ़ना,
है विकट संत्रास
हो रहा निरन्तर
तप-त्याग का ह्रास ।
क्या अब भी
सर्वत्र
ऐसा ही रहेगा?
तबाही-अराजकता और हाहाकार?
तबाही-अराजकता और हाहाकार???!!!
[[ जनवरी ९९ ]]