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हँसी की महिमा :: डॉ सत्यनारायण पाण्डेय

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काम के बोझ ने,
हँसना भूला दिया है
हम खुलकर हँस भी सकें,
वैसी जगह कहां है? 


हां,
है ऐसी ही बात,
अब तो हँसी भी रूठ गई है ---
इसी लिए तो
जिंदगी बोझ बन रही है 


अरे भाई!
अब भी सचेत हो जाओ
असमय मौत को तो न बुलाओ


हँसो
छोटी छोटी बातों पर भी,
मत खोजो हास्य के लिए बड़ा जलसा


या जलवा...


अगर यही हाल रहा तो,
मनुष्य बन कर रह जायेगा मलबा !


हंसी
गाहे-बेगाहे,
अवश्य आनी चाहिए --
कोई पास न भी हो तो, यह नुक्सा अपनाईये...
ऐसी व्यवस्था की ही जानी चाहिए... !


याद करें
कभी तो आयी होगी हँसी खुलकर
करें उन्ही पलों की याद चुन चुन कर


अरे भाई! जितना अच्छा होता है हँसना,
उससे भी कहीं अच्छा है - दूसरों को हँसाना
करें सायास प्रयास ---
जो भी आये पास वह भी हँसता हुआ जाए... 


क्यों? हम मनहूस बन बैठें
कि दूसरे की हँसी भी छिन जाए... !
यह हम सब जान लें
हँसने और हँसाने से अच्छा---
कोई काम नहीं, 


तनाव से मुक्ति का उपाय भी तो यही है.


तनाव
शरीर को झकझोर देता है, 


खुलकर हँसना भी --
शरीर को झकझोरता ही है, 


पर है दोनों में कितना अन्तर! 


तनाव की झकझोर शरीर को तोड़ देती है
हँसी भी झकझोरती है, 


पर कर तरोताजा मन-मस्तिष्क को ----
नई उर्जा भर देती है


जीवन को एक सहज सुन्दर मोड़ देती है... !!


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