$ 0 0 काठ की बनी बांसुरीकिस युक्ति से धुन बन जाती हैसुनना कभी गौर सेज़िन्दगी भी ऐसे ही पल पल सरगम गाती हैशोर में गुम गया है आत्मा का संगीतजाने क्या होती है वो शय जिसे कहते हैं प्रीत... !! काठ की बांसुरी मेंप्राण फूंकने वाले कृष्णजाने कहाँ विलुप्त हैं...यहाँ वीरान हैभक्ति का आँगन औरऔर अँधेरा पल पल रहा है जीत... !!हवा का कम्पनकुछ सिरज रहा हैरंध्रों में कोई ध्वनि उग रही हैपराजित हो रहा है मौनख़ामोशी से ज़िन्दगी पहचान रही है अपने लिएअपने सबसे बुरे दिनों में साथ खड़े होने वाले मीत... !!काठ की बांसुरी से हौले हौले रिस रहा है "कृपा रूप"संगीत... !!!