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Channel: अनुशील
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धूप में उदासी !

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धूप से भी चोट लगती है...
कि आँखों में समा जाये तो
अँधेरा सा छा जाता है!


धूप,
छाँव की
याद दिलाती है...


धूप जो इतनी तेज़ हो
तो हम छाँव के आदी लोगों को
ज़रा ज्यादा ही रुलाती हैं.


आँखों  पर 

हथेलियाँ रख  लीं
धूप से चौंधियाई आँखें 

सुकून क्या पाती ?!



यूँ ठोकरों ने रुलाया
कि आँखों में दर्द उतर आया...


जीवन नियति ऐसी  ही है--


सुख
न धूप में  है
न ही छाँव में 



जीना हो तो,
जी लें, 

अभी इसी क्षण...


कि सुकून कभी नहीं होना है, 

डगमग करती नाव में... !!


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