$ 0 0 धूप से भी चोट लगती है...कि आँखों में समा जाये तोअँधेरा सा छा जाता है!धूप,छाँव कीयाद दिलाती है...धूप जो इतनी तेज़ होतो हम छाँव के आदी लोगों कोज़रा ज्यादा ही रुलाती हैं.आँखों पर हथेलियाँ रख लींधूप से चौंधियाई आँखें सुकून क्या पाती ?!यूँ ठोकरों ने रुलायाकि आँखों में दर्द उतर आया...जीवन नियति ऐसी ही है--सुखन धूप में हैन ही छाँव में जीना हो तो,जी लें, अभी इसी क्षण...कि सुकून कभी नहीं होना है, डगमग करती नाव में... !!