मनुष्य चाहे तो अभ्यासपूर्वक भगवत्ता (भगवान की तरह सत्ता ) का अधिकारी हो सकता है। भग=ऐश्वर्य, समग्र धर्म,अक्षय यश, श्री=लक्ष्मी 'शोभा ',सौन्दर्य, ज्ञान, वैराग्य यही छः "भग "शब्द से गणित हुए हैं!
अन्यत्र भी कहा है :----वैराग्य, ज्ञान, ऐश्वर्य, धर्मधारण, आत्मशुद्धि, सद्बुद्धि, श्री (शोभा, लक्ष्मी )और यशस्वी होना, भगवान बनने या कहलाने के कारक होते हैं।
''उत्पत्तिं प्रलयं चैव भूतानामगतिं गतिम्। वेत्ति विद्याम् अविद्याञ्च स वाच्यः भगवान् इति।।
अर्थात् जो उत्पत्ति (सृष्टि ),प्रलय (सृष्टि का अन्त )भूतानां (भूत = प्राणी मात्र )=प्राणियों की गति एवं अगति तथा विद्या एवं अविद्या (अध्यात्मविद्या =श्रेय की प्राप्ति के लिए विद्या, सांसारिक विद्या =प्रेय =अविद्या ) को भलि प्रकार जान ले तो, उस को भगवान कहते हैं। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है भी है :--"अध्यात्मविद्या विद्यानाम"अर्थात् प्रसिद्ध चतुर्दशविद्याओं में मैं "अध्यात्म विद्या"हूं ।
यह सब उद्धृत करने का मेरा उद्देश्य यह है कि जैसे लक्षरूपये वाले को "लखपति ", कोटि (करोड़पति )रूपये वाले को करोड़पति कहा जाता है, ठीक वैसे ही मनुष्यमात्र चाहे तो उपर्युक्त षड् ऐश्वर्य से युक्त हो "भगवान "भी बन सकता है।