$ 0 0 रचनावह भीकविता की जोड़-तोड़ से कहाँ संभव ?यह तो दैवीय प्रेरणा हैसृष्टि का यही भेद अभेद्य है और यह प्रेरणा दिमागी कसरत कदापि नहीं न तो बुद्धि का ही स्वेद है जानें बुद्धि के परे भी कोई घटा गहराती है,तब भी स्पष्ट नहीं, ये प्रेरणा कहां से आती है! फिर भीहर सहृदय कवि यह जानता है अपने अनुभव से भी सत्य मानता है, कि, जो चीज उसने अभी अभी गढ़ी है,उसकी बुद्धि की पिटारी वह थी ही नहीं. यह रचना भी उसकी कलम से उतरेगी-ऐसी चिंता, उसने कभी की भी नहीं रचना से पहले, जरा भी न भान हुआ घटना घट गई तो, उसका संज्ञान हुआअरे भई! है यह अजीब दर्द जो एकाएक ऊभर आता है कोई यह न समझे,कविता करने वाला सुख पाता है यह तो है,मजबूरी की बात,कि वह इस दर्द से भाग नही सकताआस पास जो मेघ मंडराने हैं, उन्हे वह त्याग नहीं सकतारचनाधर्मिता की शान यही है बाकी कविता की अन्य कोई पहचान नही है ।इति शम।।