दूरी और सामीप्य के मध्य
कहीं एक अदृश्य क्षितिज है...
वहाँ कहने सुनने से परे
मौन गुनगुनाता है...
एक अदृश्य डोर बाँधती है
कोई गहरा नाता झिलमिलाता है...
बिना किसी संवाद के
ज्ञात हो जातीं हैं बातें...
दुःख का साया वहाँ गहराता है
यहाँ और अधिक काली हो जाती हैं रातें...
इस तरह दूर हो कर भी तू पास है
हमारा तुम्हारा एक ही आकाश है !!