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Channel: अनुशील
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सच ही कहती थीं अश्रु लड़ियाँ...

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कष्ट होता है
तो अनायास ही आंसू बहते हैं...
रोते हैं हम...

रो लेते हैं हम...


पर रो लेने के बाद के कष्ट का क्या... ??


आँखें बेतरह दुखती हैं...
मन भी बेतरह दुखता है...


कि...
किसी ने परवाह न की आंसुओं की...
उन्हें बहने दिया गया...


हम रो रहे थे और हमें रोने दिया गया...
रोते रहने दिया गया... !


दर्द ठहर जाता है...
एक वक़्त के बाद आंसू नहीं बहते...
मन ही रेशा-रेशा हो कर आँखों से बह जाता है...


उस छोर तक जब पहुँच गए
फिर क्या लौटना... !


आंसुओं !
यूँ ही अविरल बहना...
मेरे ही दामन में सिमटना... 


और समेटना 

कहे-अनकहे अनाम दर्द की अनगिन पातियाँ...
अपने प्रगल्भ वृत्त में...


सच ही कहती थीं अश्रु लड़ियाँ--
"जीवन गरल, अमृत मैं "



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