स्कूल के दिनों की याद...
कविता फिर हुई कहाँ उन लम्हों के बाद...
हमारा बचपन रूठा...
अपना शहर छूटा...
कितना कुछ टूट गया...
वक़्त के साथ स्मृतियों का कारवाँ लूट गया...
फिर भी सांस लेती रही दोस्ती...
लगाव कहाँ कम हुआ कभी...
मिलेंगे जो रास्तों में कहीं...
फिर से जी लेंगे वो गुज़रा हुआ जीवन भी...
कविता बहेगी...
समय के अंतराल को वो शब्द शब्द जीती हुई मिलेगी...
हम भी वहीं कहीं होंगे...
हम भी फिर कविता सा हो लेंगे... !!