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Channel: अनुशील
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छोटी छोटी अनुभूतियों का आकाश...

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धूप रच रही थी
सुनहरी आभा...


धवल धरा के आँचल में चमकती 

हीरे सी शोभा...


ऐसे क्षण को जी पाना...
एक बेहद सामान्य से दिन को
ख़ास कर सकता है...


ख़ास कर गया... !


बर्फ़ की चादर बिछी हुई है...
धूप भी गाहे बगाहे रोज़ आती होगी...


रोज़ बुनी जाती होगी चमक...


पर उन्हें महसूसने से हम चूक जाते हैं...


कम ही होता है न
बस यूँ ही उस सान्निध्य को महसूसना
जो हम सबके हिस्से खूब आते हैं...


ज़रा सा अवकाश रहे...
आँखों के आगे छोटी छोटी अनुभूतियों का आकाश रहे...


ख़ुशी खिली रहेगी...
दुर्लभ तो है मगर ऐसे ही अनायास मिलती है...
अनाम ठिकानों पर मिलेगी... !!


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