$ 0 0 एक इंतज़ारअनायास उग आया है...ज़िन्दगी को थाहती आँखों मेंजीवन का ही अक्स समाया है...पल पल बीतते पलजैसे आसमान से गिरती हुई बूँदें हैं...पत्तों पर उनके गिरने सेआकृतियों का एक संसार उभर आया है...कहीं से छिटक कर कहीं जोएक पल रह जाता है...वह अपनी चुप्पी में भीकितनी ही बातें कह जाता है...उग आये इंतज़ार कोज़िन्दगी अपनी परिधि में जीती है...बीतते पलों के साथ मिटते हुए भीएक अंश है ऐसा, जो जस का तस, सुरक्षित रह जाता है...इंतज़ार की जड़ें और गहरी होती हैं...खिलते खिलते फिर, कोई लम्हा, खिल आता है... !!