$ 0 0 डाल-डाल, हरे रंग का, दर्द उगा है...दुनिया है, यहाँ कोई न किसी का, सगा है...पराये हैं शब्द,भावों की ज़मीन पर लेकिन,अर्थ समर्थ इनमें ही पगा है...सत्य को कर आत्मसात,भावविह्वल हृदयाकाश,बेतरह बरसने लगा है...सोये हुए हैं सब,चिरनिद्रा में लीन हो ही जाना है एक दिन,समय रहते विरले ही कोई जगा है...भ्रम में ही जीता है इंसान,ये विडंबना ही है कि अंत तक रहस्य बना रहता है,कि उसने जीवन को या जीवन ने उसे ठगा है...पात-पात, गिरती बूंदों में, वही सरगम पगा है...दुनिया है, यहाँ कोई न किसी का, सगा है... !!