$ 0 0 अभी था...अभी नहीं है...सूरज जैसा तेज़जब डूबता उभरता प्रतीत होता है घड़ी-घड़ीफिर परछाईयों कीक्या ही बिसात !अभी थी...अगले पल नहीं है...कुछ प्रश्नों का कहीं हल नहीं है... !प्रश्न भी हों और उत्तरित भी हो जायेंऐसा कहाँ होता है दोनों साथ हों हासिलये कब यहाँ होता है कभी अपने हिस्से का आकाश गुम कभी थल नहीं है...कुछ प्रश्नों का कहीं हल नहीं है... !!