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Channel: अनुशील
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मझधार में अटकेगी या पार उतरेगी... ?

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ये सुबह का आकाश है...


घंटों बीतेंगे अभी
तब बर्फ़ से ढँकी श्वेत धरा देख पायेगी 

ज़रा सी लाली कभी... !


इस यात्रारत चाँद को देखते हुए
नाव का स्मरण हो आता है...


मझधार में अटकेगी 

या पार उतरेगी... ?


कितना रहस्यमय है सब, 

एक ही आकाश, 

रोज़ अलग नज़ारे...
रोज़ गुज़रता है, 

रात के स्याह सागर से चाँद, 

जाने किसके सहारे... !!



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