$ 0 0 ये सुबह का आकाश है... घंटों बीतेंगे अभीतब बर्फ़ से ढँकी श्वेत धरा देख पायेगी ज़रा सी लाली कभी... !इस यात्रारत चाँद को देखते हुएनाव का स्मरण हो आता है... मझधार में अटकेगी या पार उतरेगी... ?कितना रहस्यमय है सब, एक ही आकाश, रोज़ अलग नज़ारे...रोज़ गुज़रता है, रात के स्याह सागर से चाँद, जाने किसके सहारे... !!