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Channel: अनुशील
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दुरुहताओं के बीच...

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ऐसा कई बार हुआ है...


कितनी ही बार कविता ने मुझे बचाया है...


कभी मेरी कलम से रिस कर...

उसने मुझे रचा है...


तो कभी दूर क्षितिज से आई
किसी कालखंड में रची, किसी की कोई कविता, संबल बनी है...


जैसे मेरे लिए ही रची गयी हो
उस एक क्षण के लिए अवतरित हुई हो
कि उसे आत्मसात कर निकल सकूं अवसाद से...
कितना कठिन होता है निकलना अन्यान्य उलझनों के प्रासाद से...


दुरुहताओं के बीच
कविता ही है जो कर सकती है अनेकानेक उपक्रम
कि उसके होने में है
कई उलझनों की सहज सुलझन 


मेरी ऊँगली थामे
कविता हर बार ले आई मुझे जीवन के मुहाने 


कविते! रखना आद्र मन की माटी को...
संभाले रखना जीवन की थाती को... !!


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