$ 0 0 एक जगह...एक वजह...इतना तो चाहिए ही,कहीं रुकने के लिए...वरना भला है चलते जाना हीचलते जाते हैं,चले ही जाते हैं...मोड़ से मुड़ते हुएहम ही नहीं बिसारते पुरानी राह को,उनकी स्मृतियों से हम भी बिसर जाते हैं...इतने लम्बे रास्ते हैं...इतना विस्तार है...सब पर चल लेना हमारी क्षमताओं से ही नहीं,हमारी कल्पना से भी पार है...सो वजह मिल जाती है,तो हम रुक जाते हैं...पड़ाव के मोह से बंध,मिट्टी में कुछ बीज रोपते हैं, कुछ फूल उगाते हैं...समय सींचता है हमें...जगहों और वजहों से परेफिर एक दिन हम स्वयं किसी बाग़ का फूल हो जाते हैं...यात्रा हैचले...जागती आँखों में भीउर्वर स्वप्न पले... !!