$ 0 0 एक दिन ढल रहा था...दूजा निकल रहा था...ये उत्सवविदाई का भी था...और इसमें था निहितआगत का स्वागत भी...स्वागत और विदाई का साथहै अन्योन्याश्रितऔर परंपरागत भी...बूंदों में झिलमिल प्रकाशअँधेरे को चीरती उजाससनातन है...ओस से आशाएँ लिखता...मन है... !!