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Channel: अनुशील
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ओस से, आशाएँ लिखता, मन है... !!

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एक दिन ढल रहा था...
दूजा निकल रहा था...


ये उत्सव
विदाई का भी था...
और इसमें था निहित
आगत का स्वागत भी...


स्वागत और विदाई का साथ
है अन्योन्याश्रित
और परंपरागत भी...


बूंदों में झिलमिल प्रकाश
अँधेरे को चीरती उजास
सनातन है...


ओस से आशाएँ लिखता...
मन है... !!






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