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Channel: अनुशील
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चुभेंगे अभी और अनगिन शूल... !!

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तुम तक आने को...


कभी
मौन सेतु बनता था...
तो कभी
कविता बनती थी पुल...



ज़िन्दगी!
उसे सरमाथे रखा सदैव
जो पाई थी, कभी हमने, तुमसे
तुम्हारी चरण धूल...



देर तक, तट पर, खेलते रहे रज कणों  से
अब किनारों से आगे बढ़ चली
लहरों में है नैया
हवाओं! दिशा देना देखो न जाना भूल...


ज़िन्दगी! तेरा हौसला है हमें
हम सफ़र में हैं, हमें पता है--
चुभने ही हैं...
चुभेंगे अभी और अनगिन शूल... !!




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