$ 0 0 कोरा था कागज़...मौन में, आवाज़ थी...खाली था गगन...कहाँ लुप्त थे नभ के सारे वैभव, बात ये एक राज़ थी...सुबह रिक्त थी...ये रिक्तता पावन होती है... पावन थी... सुबहें मनभावन होती हैं... मनभावन थी...धीरे धीरेबढ़ने लगता है शोरब्राह्म मुहूर्त की शीतलता दिन चढ़ते ही लुप्त हो जाती है...कोलाहल पसर जाता है चहुँ ओर...ऐसे में--जब हलकी लाली क्षितिज पर छा रही हो...दिन की शुरुआत होने जा रही हो...तब कोरेपन की गरिमा आत्मसात करे कलम...कागज़ के एक छोर पर चुपके से लिख दे जीवन... !!