श्वेत डगर...
आच्छादित धरती का आह्लाद
रच गया सुनहरे पहर...
ठूंठ पेड़ ढंका रहेगा...
रहस्य रोमांच यूँ बचा रहेगा...
फिर से रचेगी प्रकृति उत्सव...
अंधेरों के बीच उजाले का सूक्ष्म उद्भव...
ये बारिश
हम मुट्ठी में भर आए हैं...
ज़िन्दगी जहाँ नहीं
वहां ज़िन्दगी के साए हैं... !!