$ 0 0 कविता के आँगन में...बिखरी थीं कितनी ही पंक्तियाँ...कितने ही उद्गार...सब अपने आँचल में समेट लिया...ज़िन्दगी! तुमने हमें क्या क्या नहीं दिया...भाव भाषा का वरदानयुगों युगों के दिव्य संधान तुम हमारे प्रति,उदार ही रही सदा...हम शिकायतों सेजड़ते रहे परिदृश्य,खोते रहे हर सम्पदा... ईर्ष्या द्वेष का संसार है जाने कब जानेंगे हमहमारा रचा हुआ सब मिथ्या है निराधार है शाश्वत अंश कीपहचान जिसे हो...वो जीवन जीवन हैसहजता का संज्ञान जिसे हो...ये नहीं तो सब व्यर्थ है...मन ठान ले तो क्या नहीं संभववो सर्वसमर्थ है...शुभ संकल्पों का आह्वानज़िन्दगी! तुम कविता, तुम ईश्वर, तुम मीत, तुम प्राण !!