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Channel: अनुशील
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फिर, एक ऐसा मौसम आया...

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बर्फ़ की
पतली चादर से ढँक कर...
धरती का मौन
जैसे हुआ मुखर... 


आसमान ने
जो लिखे पत्र...
सब बांचे गए
गंतव्य तक पहुंचकर...


अक्षर-अक्षर
पढ़ा गया...
धरती के आँचल में
जीवन मढ़ा गया... 


कहते-कहते
जब गला रुंध गया...
तब मौन में
फिर सब कहा गया...


फिर एक
ऐसा मौसम आया...
कहना-सुनना
सब पीछे रह गया...


आत्मीयता की वो गाँठ बंधी
बिन कहे सब संप्रेषित हो गया... !!



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