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Channel: अनुशील
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ये लम्हा वक़्त की शाख़ से टूट रहा है... !!

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वो
कोई ठोस आकार
नहीं था...
जिसे छूकर
महसूस किया जा सके... 


वो थी
बस एक याद ही...
जो मुस्कुरा रही थी
अरसे बाद भी...


ये लम्हा वक़्त की शाख़ से टूट रहा है...
हर क्षण अपना ही एक अंश हमसे छूट रहा है...


ये सब कहीं न कहीं
किसी न किसी रूप में यहीं आबाद होगा...
समय का हर किस्सा
जीवन का एक एक हिस्सा


अब जैसा है, यथावत, हमारे बाद होगा... !


हर विदाई के बाद
ज़िन्दगी फिर चल देती है अपनी लय में...
कितनी ही बार देखा होगा न इसी जीवनकाल में
उगते हुए, जीवन को, बीच प्रलय में...


शायद, तुम्हें याद होगा... ?!! 









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