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Channel: अनुशील
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बूंदों का दिलासा... !!

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ये अंतहीन सफ़र...
दृश्य बदलते हर घड़ी, हर पहर...


देखा हर रंग का हरा...
प्राकृतिक हर रंग था खरा...


आसमान पूछ रहा था बड़े स्नेह से...
"कहो, कैसी हो धरा... ?!!"


क्या कहती ??
वो भावविभोर थी... !
आसमान ने हाल पूछा है,
बस इतने से ही धन्य हुई धरा...



दर्द भी मुस्कुराया
ये देख आसमान का भी मन भर आया... !!


फिर देखा हमने
बादलों को
उमड़ते-घुमड़ते...


आपस में
कितनी ही आकृतियों को
टूटते-जुड़ते...


उन
टूटते-जुड़ते विम्बों में
खोये हुए
हमने अपना एक क्षितिज तराशा...


बारिश में भींगते
तरुवरों के सान्निध्य में
अपनी अंजुरी में भर लिया हमने
आसमान से टपकती बूंदों का दिलासा... !! 





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