शब्द कई बार बहुत कठोर होते हैं
और उनकी कठोरता तब और असह्य होती है
जब वो शब्द किसी अपने ने कहा हो
जो खूब प्रिय रहा हो... !
कितना रोये
कितने आंसू खोये
तब जाना--
वो इतना कठोर हो पाया
जो भी कहा, वह ऐसी निर्ममता से कह पाया
तो, बस इसलिए
कि हम सचमुच उसके अपने हैं...
साम्य हो मनःस्थितियों में
इसके लिए कितने मनके और जपने हैं...
सदियों से चल रहे हैं...
अभी सदियों और चलना है...
तब जाकर कहीं
अपने होंगे...
अभी कितने युग और
संस्कार तपने होंगे... !!