$ 0 0 कवि...तुम्हारी रचनाओं में वो अनूठा संसार हैजहाँ जितना भी हताश पहुँचेंकोई न कोई सिरा अपना सा मिल जाता हैशब्दों के झिलमिल प्रकाश में मन का आँगन खिल जाता हैतुम नहीं जानते कितनी आँखों का चमक हैं तुम्हारी रचनायेंकितने आकाश समाहित किये हुए हैं तुम्हारी जीवन की विवेचनायेंयहाँ ईर्ष्या द्वेष का कारोबार हैपर जानना यहीं तुम्हारे पाठकों का भी उज्जवल संसार हैऔर तुम्हारी रचनाओं से ही नूर है इस उज्जवल संसार की आँखों मेंये दोष दंश देखने वाली आँखों पर निश्चित ही भारी हैं...तुम्हारी रचनायें जीवन मूल्यों की प्रभारी हैं...प्रिय कवि...ऐसे ही रहना सदैव...जीवन आलोकित रहेगा स्वमेव... ... ... !!*** *** ***सुरेश जी, हमेशा की तरह हमें हमारी धृष्टताओं के लिए क्षमा करते रहिएगा... बनी रहे कविता... बना रहे शब्द भाव का सान्निध्य हमेशा हमेशा... !!