$ 0 0 नदी नदी पर्वत पर्वतमन अन्यमनस्क जड़वत चलता जाता है उदासहमें कहाँ उसकी सतह का भी अंदाज़ कब डूब जाएकब वहां सूरज उग आये मन के क्षितिज परकितने तो बादल हैं छाये कोहरा भी घना हैंयहाँ आँखों से ओझल हर दृश्य अनमना है ऐसे में यूँ ही कुछ लिख रहे हैं...कोई अर्थ नहीं होने का फिर भी दिख रहे हैं... !!