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Channel: अनुशील
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प्रतीक्षा... !!

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देहरी पर
एक दीप जलाया...
मन के कोने में
लौ जगमगाई...


ऐसा भी होता है
हो भी
और न भी हो
तन्हाई... !


सूरज नहीं गगन में...
चाँद तारे भी नहीं...


सबको कर विदा खाली तो है आसमान...
सूरज को तरसती धरती होगी न कहीं... !


हर आँगन को
निर्द्वंद है धूप छाँव से सरोकार...


कितने लम्हों में
बंटा होगा इंतज़ार... !


कभी कभी
धीर धरे प्रतीक्षा करना ही
समुचित कर्म है...


आश्वस्ति रहे
कि वो एक जैसा नहीं रहेगा,
बदल जाना समय का धर्म है... !!



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