$ 0 0 देहरी पर एक दीप जलाया...मन के कोने में लौ जगमगाई...ऐसा भी होता हैहो भी और न भी हो तन्हाई... !सूरज नहीं गगन में...चाँद तारे भी नहीं...सबको कर विदा खाली तो है आसमान...सूरज को तरसती धरती होगी न कहीं... !हर आँगन कोनिर्द्वंद है धूप छाँव से सरोकार...कितने लम्हों मेंबंटा होगा इंतज़ार... !कभी कभीधीर धरे प्रतीक्षा करना हीसमुचित कर्म है...आश्वस्ति रहेकि वो एक जैसा नहीं रहेगा,बदल जाना समय का धर्म है... !!