छूटते हुए दृश्यों की तरह...
एक दिन छूट जाना है खुद से ही...
इतनी छोटी सी है ये ज़िन्दगी
और अनंत हैं राहें...
जहाँ से गुज़र रहे हैं
फिर शायद ही कभी गुजरें... !
प्रबल हो सकती है चाह
लौटने की
पुनः उस राह तक...
होगी भी...
पर
अवसर नहीं होगा...
कदम कदम पर जीवन ने
विवशता का दर्द ही तो है भोगा... !!
इसलिए कदम रोप कर
जीते हुए चलें हर पग...
कौन जाने ?
कब छूट जाना है ये जग...
रूठते हुए लम्हों की तरह...
एक दिन रूठ जाना है खुद से ही...
छूटते हुए दृश्यों की तरह...
एक दिन छूट जाना है खुद से ही... !!!