$ 0 0 खुद को ढूंढ़ते हुएबहुत दूर निकल आये थे...कुछ कवितायेँ मिली हमें राह में...उन कविताओं को सहेज लाये हैं... !शायद एक दिनमिल जाये हम भी खुद कोऐसे ही किसी खोयी कविता की तरह...पर हमें पता है...ऐसा ही होगा--खुद को पाकर फिर खो देंगे हमइस बात पर फिर अनायास रो देंगे हम... !!*** *** ***खो जाना है धुंध में...इन विराट विसंगतियों को...आसन्न आपदाओं को...सकल विपत्तियों को...और खुद तुम्हें और मुझे भी इसी धुंध में मिल जाना है एक रोज़...अनिश्चितताओं के इस समुद्र मेंदो कदम जो साथ हैं...कुछ क्षण जो हमारे पास हैं...उन्हें जी लें... ?!!