हम हंस देते हैं रोते-रोते
हँसते-हँसते रो देते हैं
कितने ऐसे पल हैं जो हम
बस उलझे हुए खो देते हैं
आज ऐसे सारे पलों को गूंथ कर
हार सा एक विम्ब बनाना है
और बात जब रिश्तों की हो
फिर सारे तर्क-वितर्क परे रख
स्वेच्छा से हार जाना है
ये हार ही
वस्तुतः जीत होगी...
ज़िन्दगी की आँखों में
फिर प्रीत ही प्रीत होगी...
तुम्हें मनाते हैं...
तुम जीते, चलो हम हार जाते हैं... !!