ऐसा ही है जीवन
हसरतें पूरी नहीं होतीं...
उत्तर की आस ही शायद व्यर्थ है
हर बात हर किसी के लिए जरूरी नहीं होती...
कुछ मिलते सार्थक सवाल भी अगर
ज़िन्दगी यूँ अधूरी नहीं होती...
हम प्रश्न हो कर
प्रश्नचिन्ह बन कर ही जीते हैं...
अमृत कहाँ मिलेगा
गरल ही हर क्षण पीते हैं...
ऐसे में जीवन मुस्कुराता है
मौन ही मौन स्नेह जताता है...
भावविभोर फिर नम आँखें बरस जाती हैं
जब क्षितिज पर मिलने को उनकी आत्माएं तरस जाती हैं...
धरा गगन को फिर हम प्रणाम करते हैं
जितना स्नेह है मेरी झोली में सब तुम्हारे नाम करते हैं...!