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Channel: अनुशील
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अनचीन्हे... अनजाने द्वीप...!!

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हों जलते हुए दीप,
दिल हों समीप...!
फिर रौशनी ही रौशनी है,
जो
संग सद्भावों के हों
मोती... सीप...!!


मन के आँगन को,
फिर से दिया लीप...!
साफ़ सुथरी हो गयी माटी,
ये जाना--
हम सब हैं
सागर मध्य खोये हुए द्वीप...!!


नियति
ले आती है समीप...!
लहरें एक से दूसरे का दर्द जोड़े हैं,
तभी तो जुड़ जाते हैं न
कभी प्रत्यक्ष न मिल पाने वाले
अनचीन्हे द्वीप... अनजाने द्वीप...!!



*** *** ***

बाल्टिक सागर के मध्य द्वीपों को देखते हुए... स्मरण करते हुए एक यात्रा को...


 

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