काश!
हमारे पास घर होता,
तो फूंक डालते...
फूंक डालने के लिए
घर होना ज़रूरी है
और वो भी अपना...;
व्यथित है मन आज
क्यूंकि,
जो मन चाहे वो नहीं कर सकते,
अभाव कुछ नहीं है...
कहीं नहीं है;
लेकिन,
हमारे पास कुछ अपना भी तो नहीं है
फूंक डालने के लिए...
ये क्या कम अभाव है!
घर क्या... पड़ाव क्या
अपना तो यहाँ जीवन भी नहीं
हर सांस की कीमत चुकाते हैं हम
तब जाकर कहीं जी पाते हैं हम
आकाश हमारा अभी जाने कहाँ खोया है
अभी बंधे हुए हैं हाथ हमारे
विश्वास है, ऐसा हमेशा नहीं रहेगा...
फिर चल देंगे साथ तुम्हारे!
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२०० से ऊपर अधूरे ड्राफ्ट्स के बीच ये एक मिला... अधूरा पूरा सा... जाने कब किस मनः स्थिति में लिखा था... पर है तो ये सच्ची ही बात... सामान्य इंसान बेबस ही तो होता है... कबीर होने के लिए... और कबीर के साथ चल देने के लिए जिस अदम्य साहस की आवश्यकता है... वो है क्या इस कलयुगी चेतना के पास कहीं ?