खिली रहे मुस्कान... धारा संग निश्चित नाव का प्रस्थान...
हम सब अपने अपने "तुम"तक की यात्रा में तल्लीन हैं... स्वाभाविक है बेचैनियाँ... कि हम बिन पानी के मीन हैं...!!
ये "तुम" स्व की ही पहचान है... अनन्य-अभिन्न, वो अपना ही दूसरा नाम है...
उस तक पहुंचना तो उद्देश्य है ही पर उस तक की यात्रा अधिक अनमोल है...! यात्रा सिखाती है कुछ जरूरी पाठ जीवन के सुख दुःख से परे जिए जाते हैं जो लम्हे उनका ही असल मोल है... ... ... !!