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कभी तो हमें अपना कहोगे...!

कभी तो किनारे मिलेंगे
मुरझाये चेहरे कभी तो खिलेंगे
कभी तो नाव किनारे लगेगी
ज़िन्दगी कभी तो ज़िन्दगी की तरह मिलेगी
कभी तो हमें अपना कहोगे
कब तक यूँ सपना रहोगे...


कभी तो जरा सा अवकाश होगा
साथ दो घड़ी का सुकून हमारे पास होगा
कभी तो ख़ुशी आँखों से छलकेगी
नेह की भाषा बात बात में झलकेगी
कभी तो हमें अपना कहोगे
कब तक यूँ सपना रहोगे...


कभी तो विरोधाभास घुटने टेकेंगे
हम सारे अगर मगर दूर फेंकेंगे
कभी तो मौन मुखर होगा
कितने दुखों को हमने संग है भोगा
कभी तो हमें अपना कहोगे
कब तक यूँ सपना रहोगे...




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