नियति ने
सब तय कर रखा होता है...
लीलाधर की लीला है
सब परमेश्वर की माया है...
निमित्त मात्र बना कर लक्ष्य वो साधता है
ईश्वर स्वयं पर कभी कोई इलज़ाम नहीं लेता है
यूँ रचे जाते हैं घटनाक्रम बड़े उद्देश्य की पूर्ती हेतु
जिसे आयाम देने को बनता है कोई जीव ही सेतु
कैकेयी भी केवल निमित्त थी...
माँ थी वो... वो सहज सौम्य चित्त थी...
ये समय की मांग थी
जिसे कैकेयी ने स्वीकारा था...
राम के वन गमन की पृष्ठभूमि तैयार करनी थी न
सो कैकेयी ने यूँ अपना ममत्व वारा था...
सारा कलंक अपने ऊपर ले कर
माँ ने अद्भुत त्याग किया...
राम "राम"हो सकें इस हेतु
कैकेयी ने वर में पुत्र को वनवास दिया...
कौन समझेगा इस ममता को... ?
ऐसे अद्भुत त्याग को...!
वीरांगना थी कैकेयी...
दुर्लभ है समझना उस आग को...!!!
*** *** ***