भींगे मौसम में
याद आती है...
"स्नेहिल"धूप
स्मरण हो आता है
कितनी ही...
कविताओं का स्वरुप
रो पड़ता है मन...!
जीवन झेल रहा होता है मृत्युतुल्य कष्ट...
तभी कोई संजीवनी शक्ति कह उठती है भीतर से--
रूठ जाना भी है नेह का ही एक अनूठा रुप...
मत विचलित हो इस भींगे मौसम से
खिल आएगी फिर से...
कब तक भला ( ? ) रूठी रहेगी
वो जो है...
स्नेहिल धूप...!!!