हे मीत! हे सखे!
तुम सांध्यगीत हो...
हारती रही हूँ सदा से मैं
तुम मेरी जीत हो...!
जीवन
बहुत कठिन है बंधू...
तुम इस नीरवता में
मेरे लिए जीवन गीत हो...!
मत चले जाओ
यूँ बिसार कर...
नहीं बचेगा कुछ भी शेष
कि तुम मन से मन की प्रीत हो...!
भाव भाषा का
अद्भुत अविरल नाता है
कल्पना से परे हैं तुम्हारे सद्गुण
तुम कल्पनातीत हो...!
हे ईश्वर! हे सखे!
हे मीत...!
तुम सदा सदा से... सदियों से...
सुन्दर अप्रतिम गीत हो...!
हारती रही हूँ सदा से मैं...
हाँ तुम मेरा अभिमान... तुम मेरी जीत हो...!